कश्मीर में पुलिस की छापेमारी: 650 से अधिक किताबें जब्त, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठे सवाल

कश्मीर में पुलिस की छापेमारी: 650 से अधिक किताबें जब्त, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठे सवाल

पुलिस ने बुकस्टोर्स से मौदूदी की किताबें ज़ब्त कीं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने की आलोचना

Kashmir books
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कश्मीर में हाल ही में पुलिस द्वारा की गई एक बड़ी कार्रवाई के तहत 650 से अधिक किताबें ज़ब्त की गई हैं। यह छापेमारी कई बुकस्टोर्स पर एक साथ की गई, जिसमें प्रमुख रूप से इस्लामिक विद्वान अबुल अ’ला मौदूदी की लिखी हुई किताबें शामिल थीं। पुलिस के अनुसार, यह कार्रवाई उन किताबों के खिलाफ की गई है जो प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी की विचारधारा को बढ़ावा दे सकती हैं।

हालांकि, इस कार्रवाई को लेकर कई मानवाधिकार संगठनों और बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए हैं। वे इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं और इसे कश्मीर में सरकार की दमनकारी नीतियों का हिस्सा मान रहे हैं।

पुलिस का क्या कहना है?

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए की गई है। उनका मानना है कि मौदूदी की किताबें कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने का माध्यम बन सकती हैं और युवाओं को चरमपंथ की ओर ले जाने का काम कर सकती हैं

पुलिस सूत्रों के अनुसार, छापेमारी से पहले इन किताबों के सामग्री की जांच की गई थी, जिसमें यह पाया गया कि इनमें कुछ ऐसी विचारधाराएँ हैं जो सरकार के अनुसार सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

इस कार्रवाई के खिलाफ मानवाधिकार संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि यह कदम कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। कुछ संगठनों ने इसे सरकार द्वारा विचारों की सेंसरशिप बताया है और कहा है कि इस तरह की नीतियाँ समाज में असंतोष बढ़ा सकती हैं।

कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने भी इस कार्रवाई पर चिंता जताई है। उनके अनुसार, विचारधारा और साहित्य को दबाने से केवल सामाजिक असंतोष बढ़ेगा और यह कश्मीर में पहले से मौजूद तनाव को और भड़का सकता है।

अबुल अ’ला मौदूदी कौन थे?

अबुल अ’ला मौदूदी 20वीं सदी के एक प्रमुख इस्लामिक विद्वान थे, जिन्होंने जमात-ए-इस्लामी की स्थापना की थी। उनकी किताबें इस्लामिक राजनीति, शरीयत कानून और धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। हालांकि, कई देशों में उनकी विचारधारा को कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जाता है और उनकी कुछ किताबों पर पहले भी पाबंदी लग चुकी है।

कश्मीर में जारी दमनकारी नीतियों का हिस्सा?

विश्लेषकों का कहना है कि यह कार्रवाई कश्मीर में बढ़ती सख्ती का हिस्सा है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर में कई बार पुलिस और प्रशासन द्वारा कड़ी कार्रवाई की गई है, जिसमें राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां और इंटरनेट पर प्रतिबंध शामिल हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि किताबों पर इस तरह की कार्रवाई से वैचारिक स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है और यह कदम भविष्य में और बड़े विरोध-प्रदर्शनों को जन्म दे सकता है।

क्या होगी आगे की रणनीति?

फिलहाल, पुलिस द्वारा जब्त की गई किताबों की फॉरेंसिक जांच की जा रही है और रिपोर्ट आने के बाद यह तय होगा कि इन किताबों पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगाया जाएगा या नहीं

हालांकि, इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार संगठनों द्वारा विरोध दर्ज कराने की संभावनाएँ भी बढ़ गई हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह मामला अदालत तक जाता है या नहीं


निष्कर्ष

कश्मीर में 650 से अधिक किताबों की जब्ती केवल एक कानूनी कार्रवाई नहीं है, बल्कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सुरक्षा नीति की बहस फिर से तेज़ हो गई है। इस मामले का असर सिर्फ कश्मीर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भारत की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर डाल सकता है।


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