
चालाक बंदर और मूर्ख मगरमच्छ
चालाक बंदर और मूर्ख मगरमच्छ

पहला दृश्य – दोस्ती की शुरुआत
किसी समय की बात है, एक घना जंगल था, जिसके बीचों-बीच एक चौड़ा और गहरा नदी प्रवाहित होती थी। उसी नदी के किनारे एक विशाल जामुन का पेड़ था, जो सालों से वहाँ खड़ा था। उसी पेड़ पर रहता था एक चालाक और मज़ाकिया बंदर। वह हर रोज़ मीठे जामुन खाता, गाता-बजाता और मस्त रहता।
इसी नदी में रहता था एक मगरमच्छ। वह बहुत ही धीमा सोचने वाला और सीधा-सादा था, लेकिन उसकी पत्नी बहुत ही चालाक और स्वार्थी थी।
एक दिन मगरमच्छ नदी के किनारे आराम कर रहा था। बंदर ने उसे देखा और कहा, “अरे मित्र! क्या तुम भूखे हो? ये जामुन बहुत मीठे हैं, ज़रा चख कर तो देखो!”
मगरमच्छ को मीठा खाना बहुत पसंद था, उसने खुशी-खुशी जामुन खाए और तुरंत ही दोनों में दोस्ती हो गई। अब मगरमच्छ रोज़ आता, दोनों खूब बातें करते और जामुन खाते।
दूसरा दृश्य – मगरमच्छ की पत्नी की लालच
कुछ दिनों बाद, मगरमच्छ ने अपनी पत्नी से अपनी नई दोस्ती के बारे में बताया। मगरमच्छ की पत्नी ने जब सुना कि बंदर मीठे जामुन खाता है, तो उसकी आँखों में लालच आ गया। उसने सोचा, “अगर बंदर हर दिन इतने मीठे जामुन खाता है, तो उसका दिल कितना मीठा होगा!”
उसने मगरमच्छ से कहा, “मुझे उस बंदर का दिल चाहिए! कल ही उसे अपने घर बुलाकर मार दो!”
मगरमच्छ बेचारा धर्मसंकट में पड़ गया। एक तरफ उसकी दोस्ती थी, दूसरी तरफ उसकी पत्नी का गुस्सा। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं, वह ज्यादा तेज़ दिमाग वाला नहीं था, तो सीधा-सीधा अपनी पत्नी की बात मान ली।
तीसरा दृश्य – मगरमच्छ की चाल
अगले दिन मगरमच्छ नदी के किनारे पहुँचा और बोला, “मित्र! मेरी पत्नी ने तुम्हें अपने घर खाने पर बुलाया है।”
बंदर खुशी-खुशी तैयार हो गया, लेकिन उसने पूछा, “पर मैं नदी कैसे पार करूँ?”
मगरमच्छ ने हंसते हुए कहा, “अरे, मैं हूँ न! मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें पार ले चलूँगा।”
बंदर खुशी-खुशी मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया। मगर जैसे ही मगरमच्छ बीच नदी में पहुँचा, उसने ठहाका लगाकर कहा, “मित्र, मुझे माफ़ करना, लेकिन मेरी पत्नी को तुम्हारा दिल चाहिए। अब मैं तुम्हें मार दूँगा!”
बंदर के होश उड़ गए, लेकिन उसने घबराने के बजाय अपनी चतुराई से काम लिया।

चौथा दृश्य – बंदर की चालाकी
बंदर ने ज़ोर से हंसते हुए कहा, “अरे मित्र! तुमने पहले क्यों नहीं बताया? तुम तो जानते ही हो कि हम बंदरों का दिल शरीर में नहीं, बल्कि पेड़ पर टंगा होता है!”
मगरमच्छ ने हैरानी से पूछा, “क्या? पेड़ पर?!”
बंदर ने सिर हिलाते हुए कहा, “बिल्कुल! मैं तो अपना दिल रोज़ सुबह अपने जामुन के पेड़ पर टांग कर आता हूँ ताकि सुरक्षित रहे। अगर तुम्हें चाहिए, तो हमें वापस पेड़ पर जाना होगा!”
मगरमच्छ को तुरंत विश्वास हो गया (क्योंकि वह ज़्यादा सोचने-समझने वाला प्राणी नहीं था)। वह तुरंत वापस किनारे की ओर मुड़ गया।
जैसे ही मगरमच्छ किनारे पहुँचा, बंदर तुरंत उछलकर जामुन के पेड़ पर चढ़ गया और ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा।
पाँचवाँ दृश्य – मूर्ख मगरमच्छ का पछतावा
मगरमच्छ ने बंदर को देखा और कहा, “अब तो अपना दिल दे दो!”
बंदर ने हंसते हुए कहा, “अरे मूर्ख मगरमच्छ! कोई भी अपने शरीर के बाहर दिल नहीं रखता! तुम तो सच में बहुत मूर्ख निकले!”
मगरमच्छ को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह शर्मिंदा होकर चुपचाप पानी में वापस चला गया।
कहानी से सीख:
1. समझदारी और हाज़िरजवाबी से किसी भी मुसीबत से बचा जा सकता है।
2. मूर्खता में दूसरों की बातों पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।
3. लालच हमेशा नुकसान का कारण बनता है।
निष्कर्ष:
बंदर की चतुराई ने उसे बचा लिया, और मगरमच्छ की मूर्खता ने उसे नीचा दिखा दिया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सिर्फ ताकत और बड़ा शरीर होना काफी नहीं होता, असली ताकत होती है – बुद्धि और चतुराई।