मूर्ख सियार और ढोल (पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानी)

मूर्ख सियार और ढोल (पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानी)

1. जंगल का भूखा सियार

बहुत समय पहले की बात है। एक घने जंगल में चतुर सियार रहता था। अब यह “चतुर” सिर्फ़ नाम का था या असल में भी था, इस पर संदेह किया जा सकता है। जंगल में रहने के बावजूद वह खाने-पीने की चीज़ें ढूँढ़ने में हमेशा असफल रहता था।

एक दिन सुबह से ही उसने कुछ नहीं खाया था। जंगल में फल-सब्ज़ियाँ थीं, लेकिन भला कोई सियार क्या केले खाकर जिए? उसे मांस चाहिए था, और वह भी ताज़ा! मगर दिनभर दौड़ने-भागने के बावजूद उसे कुछ नहीं मिला। भूख के मारे उसकी आँतें गुड़गुड़ाने लगीं और आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा।

“अगर मुझे जल्दी ही कुछ खाने को नहीं मिला,” उसने कराहते हुए सोचा, “तो यह जंगल जल्द ही मेरे बिना रह जाएगा!”

2. अजीबो-गरीब आवाज़

भूख के मारे लस्त-पस्त सियार किसी तरह एक सूखी नदी के पास पहुँचा। यहाँ से गाँव भी क़रीब था, इसलिए उसे उम्मीद थी कि शायद कोई मुर्गा-भेड़ गलती से यहाँ भटक जाए।

तभी अचानक – “धम! धम! धम!”

Panchatantra Story-Siyaar and Dhol 1
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सियार का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसकी पूँछ काँपने लगी और कान खड़े हो गए।

“हे भगवान! यह कैसी आवाज़ है?” उसने डरते हुए सोचा।

कुछ देर तक वह एक झाड़ी के पीछे छिपकर आवाज़ सुनता रहा। मगर जब कोई और आवाज़ नहीं आई, तो उसकी जिज्ञासा बढ़ी।

“अगर मैं हमेशा डरता रहूँगा, तो भूखा ही मर जाऊँगा!” उसने खुद को समझाया। फिर धीरे-धीरे हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ा।

3. डर के आगे जीत!

सियार ने देखा कि वहाँ एक बड़ा सा ढोल पड़ा था।

“हम्म… तो ये आवाज़ इसी से आ रही थी?”

वह धीरे-धीरे उसके चारों ओर घूमने लगा। जैसे ही हवा चलती, पास की सूखी टहनियाँ ढोल से टकरातीं और “धम-धम” की आवाज़ आती।

अब सियार पहले जितना डरपोक नहीं रहा। वह तुरंत ढोल के पास पहुँचा और उसे *थप्प-थप्प करके देखा। फिर हल्का सा पंजा मारा।

“बिल्कुल खाली! और ये आवाज़ भी अंदर से नहीं, बल्कि बाहर की टहनियों की वजह से आ रही थी!”

अब सियार की डरपोक आँखों में चमक आ गई।

“अगर मैं बिना देखे ही भाग जाता, तो डर के मारे भूखा ही रह जाता। असली ताकत तो बुद्धि में होती है!” उसने गर्व से कहा।

4. बड़ा इनाम!

जैसे ही सियार ढोल के पास बैठकर सोच रहा था कि आगे क्या किया जाए, उसकी नजर ढोल के पास गिरे एक मरे हुए हिरण पर पड़ी।

“अरे वाह! लगता है किसी शिकारी ने इसे मारा होगा और गलती से इसे यहाँ छोड़ दिया!”

“अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे!” सियार खुशी से उछल पड़ा।

वह तुरंत दौड़कर उस हिरण के पास गया और बिना किसी चिंता के खाने लगा।

“आज तो मज़ा आ गया!” उसने मुँह भरकर कहा, हालाँकि मुँह में पहले से हिरण की हड्डी थी, जिससे वह हल्का सा खों-खों कर गया।

जब उसने पूरा पेट भर लिया, तो वह ढोल के ऊपर बैठकर सोचने लगा –

“अगर मैं बिना सोचे-समझे डरकर भाग जाता, तो यह स्वादिष्ट भोजन मुझे कभी नहीं मिलता!”

Panchatantra Story-Siyaar and Dhol 2
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5. बुद्धिमान बनो, मूर्ख नहीं!

थोड़ी देर बाद, वहाँ से एक और सियार गुज़रा। उसने देखा कि पहला सियार बड़े मज़े से बैठा है, जैसे जंगल का राजा हो!

“अरे भाई! यहाँ कुछ खाने को मिलेगा?”

पहले सियार ने मुँह पोंछते हुए कहा, “हाँ, हाँ! मगर पहले मुझे बताओ – अगर तुम इस ढोल को सुनते, तो क्या करते?”

दूसरे सियार ने झट से कहा, “भाग जाता! इतनी भयानक आवाज़ सुनकर तो कोई भी डर जाएगा!”

Panchatantra Story-Siyaar and Dhol 3
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पहले सियार ने ठहाका लगाया और बोला, “यही तो तुम्हारी सबसे बड़ी मूर्खता होती!”

फिर उसने पूरी कहानी बताई और कहा –

“अगर हम बिना सोचे-समझे किसी चीज़ से डर जाएँ, तो हम बड़े इनाम से चूक सकते हैं। हमेशा अपनी आँखों और बुद्धि का इस्तेमाल करो!”

6. कहानी की सीख

✅ डर हमेशा मूर्खता का कारण बनता है।
✅ हर अजीब चीज़ को खतरनाक नहीं समझना चाहिए।
✅ बुद्धिमानी से काम लेने वाले ही सफल होते हैं।
✅ जो बिना सोचे-समझे भागता है, वह जीवन में कुछ हासिल नहीं कर सकता।

अंत में…

पहले सियार ने अपना पेट भर लिया, दिमाग़ की ताकत से डर को हराया और खुद को “महान जंगल विचारक” घोषित कर लिया!

और दूसरे सियार ने?

खाली पेट, ललचाई आँखों से पहले सियार को देखता रहा… और मन में सोचा, “काश, मैंने भी पहले ही सोचा होता!”


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